
21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की। इसके बाद 6 जून 1944 को, उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण किया, जिसमें उन्होंने निर्णायक युद्ध में विजय के लिए गांधी जी से आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगीं। नेताजी के मन में गांधी जी के प्रति गहरा सम्मान था, और भले ही उनके बीच सैद्धांतिक मतभेद थे, गांधी जी भी उन्हें महत्व देते थे।
नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद बना हुआ है। जापान में प्रति वर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस मनाया जाता है, जबकि भारत में उनके परिवार के कई लोग मानते हैं कि नेताजी की 1945 में मृत्यु नहीं हुई। उनका विश्वास है कि नेताजी रूस में नजरबंद थे। अगर ऐसा नहीं है, तो भारत सरकार ने नेताजी की मृत्यु से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक क्यों नहीं किए?
16 जनवरी 2014 को कोलकाता हाई कोर्ट ने नेताजी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए विशेष बेंच गठित करने का आदेश दिया था। केंद्र सरकार ने नेताजी के जन्मदिन को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है, जिससे उनके आदर्श और समर्पण को याद करते हुए देश के युवाओं में देशभक्ति की भावना जागृत की जा सके।